दिल की उमंगे
कहीं गुम सी
हो गयी है।
खुशी की
किलकारी कहीं
छिन सी गयी है।
उदासी
न चाहते हुए भी
मन में
छा रही है।
उलझने अब
ज्यादा मन को
उलझा रही है।
मौसम की तरह
हो गए है लोग,
अपने अब
अजनबी से
लगने लगे है।
खत्म होती उम्मीद,
निराशा को
उजागर कर रही है।
कहने को कुछ
अब डर सा
लगने लगा है।
न आरजू
न उमंग
न अहसास
जिंदगी खत्म सी
होने लगी है।
कौन है अपना
कौन है पराया
पहचानना मुश्किल सा
अब होने लगा है।
वादे - इरादे
सारी बातें
खोखले से
अब लगने लगा है।
जीवन को सोचने का
नजरिया अब
बदलने लगा है ।
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