नवरात्र
माता की अराधना का पर्व ।
पर ये क्या ?
खालीपन सा क्यूं है ?
सूनसान सा क्यूं है ?
शायद मौत हो रही ।
हर तरफ
क्यों तनहा जी रहा इंसान
क्यों तनहा मर रहा इंसान
कफन भी नसीब नहीं आज
दौर ही शायद ऐसा आया
मन विचलित सा है
शोर आँसूओं का है
ये सन्नाटा न जाने
कब खत्म होगी
आंसूओं का शैलाब सा है
न जाने कितने बह गए
और न जाने
कितनों की आश बची है
हे मां अब तो कृपा कर ।
अपनी दया दृष्टि दिखाओ मां ।
इस आपदा से हमें बचाओ मां ।