Wednesday 27 October 2021

सवाल

खुश रहना और 
खुश दिखना
उम्मीद करना और
 उम्मीद रखना
लगता है 
जैसे जज्बातों को
अंधेरे में 
समेटे हुए है
क्यूं होती है
 उम्मीद की आस
क्यूं दिखती है 
सपनो में खास
महज
 एक छलावा है
सवाल बहुत है
पर जवाब नहीं है
ये सफर जो है
जज्बातों का
क्यूं छुटता जा रहा है
क्यूं कोई
 आस नहीं
क्यूं कोई 
जज्बात नहीं
आस खत्म होती जा रही
सवाल ही सवाल
न जाने ये सवाल
खत्म कब होगा
शायद कभी नहीं 

Tuesday 26 October 2021

व्यथा

क्या स्त्री होना इतना कठिन है , समाज की बनायी हुयी इस दकियानुसी धारणा को हम क्या कभी बदल नहीं पायेंगे । क्यो हर बार एक स्त्री को अपने अस्तित्व के लिए लडना पढता है । हमेशा समझौता करना जैसे एक स्त्री का रुप है । अगर अपने लिए कुछ बोले या अपने बारे में सोचे तो उसका चरित्र खराब और वही एक स्त्री सब सहन कर चुप रहे तो वो मर्यादा । 
कैसी परंपरा है यह जिसमें सांस लेने में भी घुटन महसूस हो । पर जीने के लिए तो सांस लेना ही है भले ही क्यो न आत्मा मर जाए ।हमारा समाज कितना भी आगे बढ जाये , कितनी भी तरक्की कर ले पर आज भी एक स्त्री को वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार है । 
किसी से बात कर ले तो सीधे उसके चरित्र पर बात आ जाती है ।आखिर कब तक इस पुरुषों की दुनिया में औरत अपने आप को तपती रहेगी । 
ये बात एक परंपरा सी बन गयी है लगता है । पहले लोग कम समझते थे तब भी स्थिति दयनीय थी और आज भी । बदलाव कुछ भी नहीं । 
शून्य से शिखर पर हमारा समाज आज है पर स्त्री की दशा वही की वहीं । 
हो सकता है मेरे द्वारा लिखे ये शब्द कुछ को गलत लगे लेकिन वास्तविकता से परे नहीं ये शब्द । आज भी घुटन भरी जिंदगी जीने मजबूर है । शायद व्यवहार सा बन गया है या एक समझौता सा बना लिया है अपनी जिंदगी को । कभी लोक लाज के डर से या कभी अपने बंधनो से । 
सिर्फ संघर्ष नजर आता है । कभी अपने मन में , कभी अपने सम्मान में ।
क्या कभी स्थिरता भी आयेंगी इनके जीवन में । आज प्रश्न सा है और शायद यह प्रश्न हमेशा रहेगा ही ।