Monday 12 September 2022

वो रात

वो रात

आज भी याद आती है वो रात

अजीब सी खामोशी थी 
उस रात को।।

हर तरफ पसरा 
सिर्फ सन्नाटा था उस रात को।।

बदहवाश सी हो गयी थी जैसे
धरातल उस रात की।।

कंपने लगी थी पूरी देह
उस खामोश रात में  ।।

अकेले थे फिर भी 
कोई तो साथ था उस रात को।।

हवा की खामोश लहरें 
डराने लगी थी उस रात को।।

अन्जाने साये के साथ
पल गुजारा था उस रात को।।

अनकही बातें , कह गयी
खामोशी की उस रात ने।।

बहुत से एहसास दिये है
उस घनेरी रात ने।।

अकेले सहने का संबल भी दिया है
उस स्याह काली रात ने।।

खामोशी में भी बहुत कुछ 
सीख दे गयी उस रात ने।।

अकेले रहने का हौसला 
समझा गयी उस रात ने।।

अब डर नहीं उस रात का
कितनी भी रातें आये
तैयार कर लड़ने को 
तत्पर है उस रात में ।।

Tuesday 12 July 2022

गुरु

🙏🏻  गुरु पूर्णिमा 🙏🏻
             
ज्ञान दे वो गुरु 
पहचान दे वो गुरु 

जीवन के राह में 
संस्कार दे वो गुरु

मुश्किल की दीवार को
ढाह दे वो गुरु 

अटके मझदार को
पतवार दे वो गुरु 

नौका को तट पर
ठहराव दे वो गुरु 

आती हुई परेशानियों को
जान ले वो गुरु 

मुश्किलो को देख कर
संभाल ले वो गुरु 

भटके हुए मुसाफिर को
सही दिशा दे वो गुरु 

गलतियों को जान कर
सबक जताये वो गुरु

छोड़कर अपने यशगान जो
दूसरों को आगे बढा़ये वो गुरु 

पैरों की धूलि को
माथे पर लगाये वो गुरु 

फूलों के गुच्छों में 
चंदन सी महक दे वो गुरु 

खुद दीपक  बन जलकर 
रोशनी दे वो गुरु 

नमन है ऐसे गुरुओं का
जिनका सानिध्य हमने पाया

💐 गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं 💐

रुचि

Tuesday 5 July 2022

जिंदगी

मुझे पता नहीं लिखावट कैसी होनी चाहिए और क्या पता जो लिख रहीं हूं उसे कोई पढ़ भी पायेगा । फिर भी लिखती हूँ अपने मन की बात । शायद यही वो जगह है जहाँ मैं अपनी बातें कह पाती हूँ शायद इसलिए भी कि मुझे पता है कोई जवाब मुझे नहीं मिलने वाला । सोचती हूँ कभी सोशल मिडीया में लिख दूँ पर मुझे मालूम है अपने जज्बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता । काश कोई होता जिंदगी में जिसे अपने मन की बात कहती कि मुझे आज क्या महसूस हुआ , मैने क्या सोचा , मैं क्या करना चाहती हूं शायद जवाब भी मिल जाता अगर कोई आपकी जिंदगी में होता तो ।
ऐसा नहीं है कि मैं अकेले हूं मेरा अपना परिवार है फिर भी न जाने क्यूँ जिंदगी में कुछ कमी खलती रहती है । एक खालीपन सा है । लगता है कोई बहुत पीछे छूट गया है , इसका मतलब ये नहीं कि मैं निराशावादी हूँ बिलकुल नहीं । 
पर न जाने क्यूँ अधूरा सा है ।
हमेशा सोचती हूँ कि ऐसा क्या किया है मैने जो आज यह सोच है मेरी । जवाब आता ही नहीं । अपने आप शायद इसलिए व्यस्त रखती हूँ कि सवाल मन में न उठे फिर भी कहते है न मन तो चंचल है ये उसे ही याद करता है जिसे हम भूलना चाहते है । 
बहुत सारी बाते है कहने को कि कोई समझे मुझे । अगर लगे कि मैं कहीं गलत हूँ तो मुझे टोके समझाये पर कोई तो अपना हो ।
औरतो के जीवन में ये एक बडी विडम्बना है कि शादी के बाद वो अपना जीवन भूल जाती है । पता नहीं किसको दिखाना है । एक मां , पत्नी , बहू सारे रिश्तों में इस कदर उलझ सी जाती है और भूल जाती है उस सख्स को जो वो खूद होती है । 
मैने भी शायद यही गलती कर दी और भूल गयी कि मैं कौन हूँ । आज मुझे पता है वक्त वापिस नहीं आयेगा जिससे मैं अपना बीता पल बदल सकूँ पर एक टिस है कि क्यूँ 
क्यूँ मैं अपने इस जीवन में खुश नहीं ।
लोग कहते है आपके विचार और आप दोनों अलग है । पर लोगों को क्या पता मैं हँसती हूँ ताकि मेरे दर्द दूसरों को न दिखे । तकलीफ है पर मैं नही बताती क्योकि मैं जानती हूँ लोगो को आपकी तकलीफ से कोई फर्क नहीं पडता । शायद इसलिए व्यक्तित्व अलग दिखता है मेरा ।
कहने को तो बहुत सी बाते है फिर शायद आया मैं तो वही खडी़ हूँ 
न जाने ये सफर अब कैसे कटेगा

Thursday 12 May 2022

मां

मां 

एक शब्द 
s पूरी 
सृष्टि समाहित हैं 

क्या उपहार दे
जिसने हमें गढा है

क्या दुआएं दे
जिसकी दुआओं में 
हमारे लिये सिर्फ 
खुशियां हैं 

क्या कहूं 
जो सिर्फ हमारी
सुनती हैं 

अपने  बच्चे के लिये 
सारा जीवन समर्पित 
कर देतीं हैं मां 

दिन रात एक 
कर देतीं हैं मां 

बच्चे के खुशी में 
खुश हो जातीं 
दुख में 
दुखी हो जाती

मां सिर्फ मां हैं 
और कुछ नहीं 

वो हमारे पास
रहें या न रहें 
उनका आशीष
हमेशा हमारे
साथ रहता हैं ।।

                             ।। रुचि ।।

Monday 2 May 2022

सफर ऐ जिंदगी पार्ट 2

वैसे मै ज्यादा शांत नहीं रहती और न ही मुझमें ज्यादा धैर्य है । मैं जानती हूँ न अपने बारे में । क्या कहूँ । लेकिन इन पाँच महीनों में मुझे इतना सीखा दिया की लगता है एक उम्र भी कम पड़ जाये । 
कोई साथ नहीं देता आपका , जब परिस्थिति खराब हो । या यो कहें कि असली पहचान होती है इन्सान की । 
किताबों में अकसर पढा करते थे कि वक्त ही पहचान कराता है अपनो की , सच ही है । 
वक्त ही है , अच्छा , बुरा , सही , गलत । 
और शायद कर्म भी है ।
क्योंकि कहते है न जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे । समझने की कोशिश कर रही । ये कर्म का फल है या समय की मार । जो वक्त गुजर रहा है , तो क्या मान ले कि हो सकता है वक्त अभी और भी बचा है क्योंकि जो बीत रहा है उसमें जीना ............. शायद अपने कर्म ही होंगे ।
धीरज तो है नहीं , पर करें भी क्या इंतजार के अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं , इसलिए वक्त ने शायद धीरज रखना भी सीखा दिया । 
कभी कभी होता है न इन्सान सोचता कुछ और है और असल में होता कुछ और ही है । समझ ही नहीं आता क्या करें । लगता है अब सब खत्म , कैसी झुंझलाहट सी आ जाती है । पूरे बदन पर मानो करंट लग गया हो । मान करता है खूब चिल्लाओ और अपनी बात कहे पर किससे ? 
कोई नहीं होता सुनने वाला , बस अकेलापन ।
हां यही तो रहता है साथ हरदम, अपना आकेलापन
ये अकेलापन इसलिए नहीं है कि कभी मैंने दूसरों की उपेक्षा की हो बल्कि ये आकेलापन इसलिए है क्योकिं मौकापरस्त हो गए है आजकल के इन्सान । 
जज्बात का तो जैसा कोई मतलब ही नहीं । बस अपना काम निकालने के लिए दोस्ती करते है और काम निकलने के बाद पहचानते ही नहीं  । 
इसका मतलब ये नहीं कि हर कोई गलत हो , पर क्या करें ठोकर जो मिली है उसे भूला भी नहीं जा सकता ।
इंसानी फितरत ही ऐसी है 
पता नहीं होता क्या , कब , कैसे पल आ जाये जिसे जीना भी हो । 
चाहे मजबूरी से या इच्छा से 

Wednesday 2 March 2022

सफर ऐ जिंदगी

कहते है न जिंदगी बदलने के लिए एक लम्हा ही काफी है । कब , क्या , कैसे हुआ ये मायने नहीं रखता । पर उस लम्हे से पूरी जिंदगी बदल जाती है । ऐसे ही जिंदगी बदली मेरी और मेरी बेटी की । सोचा ही नहीं था कभी कि ऐसा समय आयेगा । 
आज पूरे तीन महीने हो गये । इन तीन महीनों में बहुत से अनुभव हुये । बहुत अच्छी या बुरी नहीं कहुंगी पर हां जीवन का शायद कड़वा सच सामने आ गया । उम्मीद नहीं थी फिर भी ईश्वर का साथ जो साथ था सब सह गये और आगे बढ़ गये । कौन अपना है और कौन पराया सारे भेद साफ नजर आ गये । अनुभव ही ऐसा है ।
पिछले दिसम्बर दो तारीख को मेरे Husband को पैरालैसिक ( लकवा ) के कारण हास्पिटल में भर्ती कराई । वहां से शुरु हुई संघर्ष की असली कहानी । उसी समय बेटी का दसवीं का पेपर । लगा मानों भगवान एक तरह मेरी परीक्षा ले रहा है । अकेले बच्चे का पेपर , हास्पिटल , मरीज , दवाई न जाने कितने काम अकेले कर पडी़ । कोई नहीं था साथ पर न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई और मेरे काम होते चले गये । शायद ईश्वर को लगा हो मैं अकेली न रहूं इसलिए भरपूर साथ दिया । 
जहां लगा कि अब कोई आस नहीं दिख रही सब अँधेरा है , कहीं न कहीं से उम्मीद जग जाती और उजाला दिख जाता । जैसे तैसे अस्पताल के आई सी यू के सत्रह दिन कटे । लगा मानों जंग जीत ली । पर मुझे क्या पता था असली परीक्षा तो आगे आनी बाकी थी । 
अकेले ही दौड़ पडी़ अपने हर काम करने । किससे कहती कि मदद करो । लोगों का हुजुम भी देखा , जो आपकी बेबसी पर आकर मुस्कुराकर चले जाते है इस गलतफहमी के साथ कि सामने वाला बेवकूफ है और हमने बेवकूफ बना दिया । ये कहना नहीं चाहती पर क्या करुं देखा है नजरों के सामने ऐसे लोगों को , जो दावे तो खूब करते है पर असल में जब करने की बारी आती है मुंह तक नहीं दिखाते । छुपकर निकल जाते है ।
कोई साथ दे या न दे पर मेरा ईश्वर हमेशा मेरे साथ है । उसे पता है मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत । मुझे भरोसा है मेरे ईश्वर पर वो मेरे लिए जो भी करेगा और जो भी सोचेगा , मेरे हित में ही रहेगा ।
बहरहाल संघर्ष अभी जारी है ।