Friday 18 June 2021

खामोशी

कहीं सचमुच 
गुम न हो जाऊँ 
इस भीड़ के बाजार में
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से

कहीं सचमुच 
भूल न जाऊँ
अपने आप को जमाने में
इसलिए शायद 
डर है इस खामोशी से

कहीं दफन न
हो जाये 
ख्वाब मेरे
दूसरों के ख्वाब
पूरे करते - करते
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से 

कहीं ढल न जाये
ये चंचलता
दूसरों के 
उकसाने पर
इसलिए शायद 
डर है इस खामोशी से

क्यों रहे खामोश
दूसरो के आजमाने में
न जाने क्या हो
आगे के फसाने में
मंजिल नजर नहीं
रास्ता अभी दिखा नहीं
इसलिए शायद 
डर है इस खामोशी के
आ जाने से ।