गुम न हो जाऊँ
इस भीड़ के बाजार में
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से
कहीं सचमुच
भूल न जाऊँ
अपने आप को जमाने में
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से
कहीं दफन न
हो जाये
ख्वाब मेरे
दूसरों के ख्वाब
पूरे करते - करते
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से
कहीं ढल न जाये
ये चंचलता
दूसरों के
उकसाने पर
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी से
क्यों रहे खामोश
दूसरो के आजमाने में
न जाने क्या हो
आगे के फसाने में
मंजिल नजर नहीं
रास्ता अभी दिखा नहीं
इसलिए शायद
डर है इस खामोशी के
आ जाने से ।