समय का पता ही नहीं चलता ।
दिन कब बीतता है
वक्त कब गुजरता है
कुछ पता ही नहीं चलता ।
खुद के लिए जैसे
कुछ अहसास ही नहीं ।
फिर भी न जाने
कुछ अधूरेपन में ही
गुजरती है जिंदगी ।
कोई ख्वाहिश करना जैसे
एक दर्द सा लगता है ।
अपने लिए समय
जैसे सपना सा है ।
बस उम्मीद लगाए रहते है
कि कोई समझे
पर वो भी लगता है
सिर्फ सपना ही है ।
जीना ही है
और न जाने कब तक ।
निराशा नही है
पर शायद अब
आशा ही नहीं है ।
रुचि