Friday 21 July 2023

सावन और श्रृंगार

सावन की बौछार 
जैसे नारी का श्रृंगार 

बिन बारिश सावन अधूरा
बिन बारिश नारी मन चूरा

पाँवो लाली में माहुर की 
आसमान में उमड़ते बादल सी 

पाँवो पे जो पाजैब है बाजे
मेघो की घनघनाहट साजे

चुटकी बिछयों की लगी है प्यारी
जैसे चाँद की चमकती चांदनी न्यारी

कमर पर जो कमरधन फूले
सावन के वो इठलाते झूले

हाथों में मेंहदी है रचती
सावन में हरियाली सजती

चूडी़ कँगना खनकते खन खन
बारिश में मन महकते घन घन

बाजुबंद की सुंदर माया
सावन में इठलाती काया

कंठ में सोहे हार अति प्यारी
उफनते नदी की हिलोर मतवाली

कानों में झूमके है बसते
सावन में बारिश है रिझते

आँखो में काजल है संवारी
अमावस है चाँद पर भारी

माथे में बिंदिया जो सजते
सावन को जैसे हरियाली पूछते

बालो पर गजरा जो कहता
सावन में नदी इठलाते बहता

बिन बारिश सावन है अधूरा
बिन श्रृंगार नारी मन चूरा ।।