Thursday 25 February 2021

करोना काल

पूरे एक साल होने को आ रहा है ।पिछले साल मार्च महीने से कोरोना वायरस हम सभी के जीवन में आया और एक बहुत बडा़ बदलाव कर गया । रहन सहन, खानपान , विचार , जीवन शैली में काफी कुछ बदल सा गया । रिश्तों के मायने समझ में आए , अकेले का मायने और बहुत कुछ । 
न जाने कितनों से बिछड़ भी गये और कितनो को देख भी नहीं सके ।इस असमय काल ने कई घरों को रोता छोड़ दिया । कई अपनो का साथ अकेले रह गया । कई रिश्ते अधूरे रह गए ।
जहां बहुत सी खामिया रही वही खूबी भी दिखी ।
कहते है न आवश्यकता अविष्कार की जननी है । सच ही है हमने भी न जाने कितने काम कम्प्यूटर पर कर डाले ।आधुनिकता से परिचय तो था पर उपयोग का वक्त लगता था जैसा अभी हुआ । पूरा का जैसे नेटवर्क के माध्यम से सभी ने पूरा किया ।घर , परिवार का महत्व समझ में आया ।यहां तक कि जीवन का सबसे बडा़ सच खाने का मूल्य हम सभी को समझ में आया । 
आज जब हम सभी एक दूसरे के प्रतिस्पर्घी बने हुए है , कोई किसी को पीछे धकेलने का मौका नहीं छोड़ता , कोई आगे बढ़ जाए तो उसको पीछे खिंचने न जाने कितने हाथ आगे बढ़ जाते है ऐसे में इस महामारी के दौर में सबने मिलकर एक दूसरे की सहायता की , जो मानवीय जीवन में काफी प्रशंसनीय है ।मानव को अपनी मानवता याद दिला दी इस महामारी ने ।
कई घरों को रोता भी देखा । मौतो ने तो जैसे झकझोर ही दिया । परिवार में एक सदस्य की कमी भी कई रिश्तों को तन्हा कर देता है ।
फिर भी इंसान नही समझता है । एक दूसरे के साथ अपने व्यवहार में बदलाव नहीं करता है ।मरने के बाद तारिफ किया तो क्या किया , जब जिंदा है तब तो खुशी बाँटो । ईश्वर ने इंसान बनाया है तो इंसानियत दिखाओ । सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखो ।
जीवन दोबारा मिले इसकी क्या गारंटी । खुश रहो और खुशियाँ मनाओ ।  
                                             
                                          ।। रुचि ।।

Monday 22 February 2021

दास्तान

टूट सी गयी हूं,
पर बिखरुंगी नहीं।

मोम सी सहमी हूं,
पर पिघलूंगी नहीं।

जल सी गयी हूं,
पर राख बनूंगी नहीं।

नीर सी हो गयी हूं,
पर बहूंगी नहीं।

मन में कई तुफान है,
पर फैलूंगी नहीं।

एकांत में जी रही हूं,
पर मौन रहूंगी नहीं।

न जाने अंजाम क्या है,
पर पीछे हटूंगी नहीं।

Saturday 13 February 2021

ख्वाहिश

ये जो ख्वाहिश होती है न, 
बहुत ही खूदगर्ज होती है ।
कभी मन को बहला देती है ,
तो कभी मन को समझा देतीं हैं ।
बस धोखा देना जानती है । 
दिलासा देतीं है ,और कुछ नहीं ।
फिर भी लगे है सब
नई ख्वाहिश के इंतजार में 
और ये ख्वाहिश है 
जो कभी खत्म ही नहीं होतीं ।
                                        रुचि 

सिर्फ तुम

हां तुम
सिर्फ तुम
पसंद तुम
नापसंद तुम
प्यार तुम
इजहार तुम
इकरार तुम
इनकार तुम
अपना तुम
अहसास तुम
यादों में तुम
ख्वाबों में तुम
सुबहों में तुम
शामों में तुम
वादियों में तुम
हवाओं में तुम
सारी फिजाओं में तुम
तुम नहीं तो
कुछ भी नहीं
मेरी हर अल्फाजों में तुम
रुह की हर सांसो में तुम
सिर्फ तुम सिर्फ तुम सिर्फ तुम
                                        रुचि 

Wednesday 10 February 2021

मन न जाने

दिल की उमंगे
कहीं गुम सी 
हो गयी है।
खुशी की 
किलकारी कहीं 
छिन सी गयी है।
उदासी 
न चाहते हुए भी 
मन में 
छा रही है।
उलझने अब 
ज्यादा मन को 
उलझा रही है।
मौसम की तरह
हो गए है लोग,
अपने अब
अजनबी से 
लगने लगे है।
खत्म होती उम्मीद,
निराशा को
उजागर कर रही है।
कहने को कुछ
अब डर सा 
लगने लगा है।
न आरजू
न उमंग
न अहसास
जिंदगी खत्म सी
होने लगी है।
कौन है अपना
कौन है पराया
पहचानना मुश्किल सा
अब होने लगा है।
वादे - इरादे 
सारी बातें
खोखले से 
अब लगने लगा है।
जीवन को सोचने का
नजरिया अब
बदलने लगा है ।