क्यूं है मजदूर
रहता है जमीं पर
फिर क्यूं है मजबूर
मेहनत में जीता है
मेहनत में मरता है
फिर क्यूं पूरे जीवन
उम्मीदों को घिसता है
दुनिया की दुनियादारी में
कमियों को ढूंढता है
पिघले हुए अरमानों में
बात अपनी कहता है
होती क्या मजदूरी
कहती जो मजदूरी
आँखो में आँसू के
प्याले वो पीती है
नाम जो मजदूरी
संघर्षों की जुबानी है
हर कोई नहीं जानता
इनकी ये कहानी है
वर्गो के गलियारों में
ऊंच नीच के भावों में
पहचान अपनी कमाने में
मरता है मजदूर
खून पसीना जिसके
माटी में सना है
उन्मुक्त भाव जिसके
जहन में पला है
हाथों से अपना
भाग्य बनाते है
अपनी जुंबा अपनी
कहानी बताते है
पहाड़ काट
राह जो बनाते है
दरिया को चीर
मंजिल तक पहुँचाते है
भरसक , बेखैब ,बेबाक
इनकी जिंदगानी है
निश्छल निर्माणक
यही इनकी कहानी है
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