Wednesday 2 March 2022

सफर ऐ जिंदगी

कहते है न जिंदगी बदलने के लिए एक लम्हा ही काफी है । कब , क्या , कैसे हुआ ये मायने नहीं रखता । पर उस लम्हे से पूरी जिंदगी बदल जाती है । ऐसे ही जिंदगी बदली मेरी और मेरी बेटी की । सोचा ही नहीं था कभी कि ऐसा समय आयेगा । 
आज पूरे तीन महीने हो गये । इन तीन महीनों में बहुत से अनुभव हुये । बहुत अच्छी या बुरी नहीं कहुंगी पर हां जीवन का शायद कड़वा सच सामने आ गया । उम्मीद नहीं थी फिर भी ईश्वर का साथ जो साथ था सब सह गये और आगे बढ़ गये । कौन अपना है और कौन पराया सारे भेद साफ नजर आ गये । अनुभव ही ऐसा है ।
पिछले दिसम्बर दो तारीख को मेरे Husband को पैरालैसिक ( लकवा ) के कारण हास्पिटल में भर्ती कराई । वहां से शुरु हुई संघर्ष की असली कहानी । उसी समय बेटी का दसवीं का पेपर । लगा मानों भगवान एक तरह मेरी परीक्षा ले रहा है । अकेले बच्चे का पेपर , हास्पिटल , मरीज , दवाई न जाने कितने काम अकेले कर पडी़ । कोई नहीं था साथ पर न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई और मेरे काम होते चले गये । शायद ईश्वर को लगा हो मैं अकेली न रहूं इसलिए भरपूर साथ दिया । 
जहां लगा कि अब कोई आस नहीं दिख रही सब अँधेरा है , कहीं न कहीं से उम्मीद जग जाती और उजाला दिख जाता । जैसे तैसे अस्पताल के आई सी यू के सत्रह दिन कटे । लगा मानों जंग जीत ली । पर मुझे क्या पता था असली परीक्षा तो आगे आनी बाकी थी । 
अकेले ही दौड़ पडी़ अपने हर काम करने । किससे कहती कि मदद करो । लोगों का हुजुम भी देखा , जो आपकी बेबसी पर आकर मुस्कुराकर चले जाते है इस गलतफहमी के साथ कि सामने वाला बेवकूफ है और हमने बेवकूफ बना दिया । ये कहना नहीं चाहती पर क्या करुं देखा है नजरों के सामने ऐसे लोगों को , जो दावे तो खूब करते है पर असल में जब करने की बारी आती है मुंह तक नहीं दिखाते । छुपकर निकल जाते है ।
कोई साथ दे या न दे पर मेरा ईश्वर हमेशा मेरे साथ है । उसे पता है मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत । मुझे भरोसा है मेरे ईश्वर पर वो मेरे लिए जो भी करेगा और जो भी सोचेगा , मेरे हित में ही रहेगा ।
बहरहाल संघर्ष अभी जारी है ।