Monday 2 May 2022

सफर ऐ जिंदगी पार्ट 2

वैसे मै ज्यादा शांत नहीं रहती और न ही मुझमें ज्यादा धैर्य है । मैं जानती हूँ न अपने बारे में । क्या कहूँ । लेकिन इन पाँच महीनों में मुझे इतना सीखा दिया की लगता है एक उम्र भी कम पड़ जाये । 
कोई साथ नहीं देता आपका , जब परिस्थिति खराब हो । या यो कहें कि असली पहचान होती है इन्सान की । 
किताबों में अकसर पढा करते थे कि वक्त ही पहचान कराता है अपनो की , सच ही है । 
वक्त ही है , अच्छा , बुरा , सही , गलत । 
और शायद कर्म भी है ।
क्योंकि कहते है न जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे । समझने की कोशिश कर रही । ये कर्म का फल है या समय की मार । जो वक्त गुजर रहा है , तो क्या मान ले कि हो सकता है वक्त अभी और भी बचा है क्योंकि जो बीत रहा है उसमें जीना ............. शायद अपने कर्म ही होंगे ।
धीरज तो है नहीं , पर करें भी क्या इंतजार के अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं , इसलिए वक्त ने शायद धीरज रखना भी सीखा दिया । 
कभी कभी होता है न इन्सान सोचता कुछ और है और असल में होता कुछ और ही है । समझ ही नहीं आता क्या करें । लगता है अब सब खत्म , कैसी झुंझलाहट सी आ जाती है । पूरे बदन पर मानो करंट लग गया हो । मान करता है खूब चिल्लाओ और अपनी बात कहे पर किससे ? 
कोई नहीं होता सुनने वाला , बस अकेलापन ।
हां यही तो रहता है साथ हरदम, अपना आकेलापन
ये अकेलापन इसलिए नहीं है कि कभी मैंने दूसरों की उपेक्षा की हो बल्कि ये आकेलापन इसलिए है क्योकिं मौकापरस्त हो गए है आजकल के इन्सान । 
जज्बात का तो जैसा कोई मतलब ही नहीं । बस अपना काम निकालने के लिए दोस्ती करते है और काम निकलने के बाद पहचानते ही नहीं  । 
इसका मतलब ये नहीं कि हर कोई गलत हो , पर क्या करें ठोकर जो मिली है उसे भूला भी नहीं जा सकता ।
इंसानी फितरत ही ऐसी है 
पता नहीं होता क्या , कब , कैसे पल आ जाये जिसे जीना भी हो । 
चाहे मजबूरी से या इच्छा से 

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