खुश दिखना
उम्मीद करना और
उम्मीद रखना
लगता है
जैसे जज्बातों को
अंधेरे में
समेटे हुए है
क्यूं होती है
उम्मीद की आस
क्यूं दिखती है
सपनो में खास
महज
एक छलावा है
सवाल बहुत है
पर जवाब नहीं है
ये सफर जो है
जज्बातों का
क्यूं छुटता जा रहा है
क्यूं कोई
आस नहीं
क्यूं कोई
जज्बात नहीं
आस खत्म होती जा रही
सवाल ही सवाल
न जाने ये सवाल
खत्म कब होगा
शायद कभी नहीं
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