Tuesday 26 October 2021

व्यथा

क्या स्त्री होना इतना कठिन है , समाज की बनायी हुयी इस दकियानुसी धारणा को हम क्या कभी बदल नहीं पायेंगे । क्यो हर बार एक स्त्री को अपने अस्तित्व के लिए लडना पढता है । हमेशा समझौता करना जैसे एक स्त्री का रुप है । अगर अपने लिए कुछ बोले या अपने बारे में सोचे तो उसका चरित्र खराब और वही एक स्त्री सब सहन कर चुप रहे तो वो मर्यादा । 
कैसी परंपरा है यह जिसमें सांस लेने में भी घुटन महसूस हो । पर जीने के लिए तो सांस लेना ही है भले ही क्यो न आत्मा मर जाए ।हमारा समाज कितना भी आगे बढ जाये , कितनी भी तरक्की कर ले पर आज भी एक स्त्री को वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार है । 
किसी से बात कर ले तो सीधे उसके चरित्र पर बात आ जाती है ।आखिर कब तक इस पुरुषों की दुनिया में औरत अपने आप को तपती रहेगी । 
ये बात एक परंपरा सी बन गयी है लगता है । पहले लोग कम समझते थे तब भी स्थिति दयनीय थी और आज भी । बदलाव कुछ भी नहीं । 
शून्य से शिखर पर हमारा समाज आज है पर स्त्री की दशा वही की वहीं । 
हो सकता है मेरे द्वारा लिखे ये शब्द कुछ को गलत लगे लेकिन वास्तविकता से परे नहीं ये शब्द । आज भी घुटन भरी जिंदगी जीने मजबूर है । शायद व्यवहार सा बन गया है या एक समझौता सा बना लिया है अपनी जिंदगी को । कभी लोक लाज के डर से या कभी अपने बंधनो से । 
सिर्फ संघर्ष नजर आता है । कभी अपने मन में , कभी अपने सम्मान में ।
क्या कभी स्थिरता भी आयेंगी इनके जीवन में । आज प्रश्न सा है और शायद यह प्रश्न हमेशा रहेगा ही ।

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