ये मौसम तो लगता है ,
रुठ सा गया है ।
ख्वाहिशो का बादल जैसे ,
थम सा गया है ।
चाहत थी पाने की उसे,
न जाने कहां ,
बदल सा गया है ।
मनाने की दरकार है अभी ,
न जाने क्यों ,
अनजान सा बना है ।
न छेडो इस मौसम को ,
वक्त है संभल जाओ ।
रोक लो इस मौसम को ,
वरना जीवन भर की सजा है ।
।। रुचि ।।
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